चले गए... वो हमको खाक करने आये थे वो हमको राख करके चलें गए कहाँ गए वो दिन थे वो भी क्या दिन कहाँ खो गए भीड़ में आते-जाते वो बादल भी खोया वो मौसम भी छूटा खाक पुरखों किस्तें सहोदर अपने मेरे ही थे ?

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